Monday, August 19, 2013

सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !

मैं हूं आपका नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला। मेरा निर्माण 1734 में शुरू हुआ था। मुझे जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने बनाया था। बेशक मैं आज इस शहर का प्रहरी या खूबसूरत पर्यटन स्थल बन चुका हूं। बरसात के मौसम में मेरी रवानी देखने लायक रहती है, पर मुझे बनाने के पीछे राजघराने की सुरक्षा सबसे बड़ी वजह थी। एक तरफ जब मुगलकाल का पतन था और दूसरी तरफ मराठा ताकतवर हो रहे थे, तब मेरा निर्माण कराया गया।
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मुझ तक पहुंचने के वैसे तो तीन रास्ते हैं, लेकिन आमेर महल वाला रास्ता तो जब राजपरिवार जयपुर रहने लगा, तब से इतना कारगर नहीं रहा है। 
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अलबत्ता कनक घाटी वाला 9 किलोमीटर का रास्ता सबसे ज्यादा व्यस्त रहता है, क्योंकि वो मुझे जयगढ़ से जोड़ता है। 

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पर्यटन के लिहाज से कार और बस से मुझ तक पहुंचने का आधुनिक मार्ग तो बहुत बाद में बना है। मेरा सबसे पुराना और सुरक्षित रास्ता शहर के बीच से यानी आज की पुरानी बस्ती से जाता है। 
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पथरीली राह लेकिन इतनी खूबसूरत और सर्पीली कि मुझ तक पहुंचने पर ये खूबसूरत हिल स्टेशन का अहसास कराती है। इस रास्ते से ज्यादातर पैदल या दुपहिया वाहन चालक रिस्क लेकर चढ़ते रहते हैं। वैसे राजाओं के जमाने में तो यहां से राजपरिवार हाथी, घोड़े और कहार पर सवार होकर जाते थे। वैसे मेरे आंगन में दो और खासियत हैं। पहली, यहां राजपरिवार का खजाना था, दूसरी यहां कैदियों या अपराधियों को नजरबंद किया जाता था। कहते हैं या शहर की मशहूर नृत्यांगना रस कपूर को भी कैद रखा गया था। साथ ही अवध के नवाब वाजिद शाह को भी इसमें शरण मिली थी। वैसे इसका मूल नाम सुदर्शनगढ़ था लेकिन बाघों के निवास की वजह से इसका नाम नाहरगढ़ पड़ा, लेकिन कहा यह भी जाता है कि नाहरसिंह भोमिया का मंदिर बना इसलिए भी इसका नाम नाहरगढ़ हो गया। महाराजा सवाई राम सिंह ने भी 1868 में इसका विकास कराया और महाराजा माधोसिंह मेरे भीतर माधवेंद्र महल बनाया था जिसमें 9 अलग-अलग सेक्शन बने हुए हैं जिसमें रानियों का निवास भी रहा था। 
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मेरे आंगन में बरसात के पानी पीने लायक बनाए रखने के लिए खूबसूरत बावडिय़ां भी बनाई गईं, जो आज भी पानी को बचाए रखने में सक्षम हैं। 
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मेरे एक हिस्से में बना ऐतिहासिक पड़ाव दीपावली पर सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनता है, जहां से लोग शहर की खूबसूरती को निहारते हैं। यह देखते हैं कि ये शहर अब कहां से कहां तक फैल गया और फल-फूल रहा है। 
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लेकिन नाहरगढ़ आज भी यह दोहराता है कि बेशक मैं ऊंचा हूं और मुझ तक पहुंचना थोड़ा दूभर है, लेकिन सच में सुरक्षित हूं। हमेशा एक निगहबान की तरह शहर को सुरक्षा देता रहूंगा। 
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