राजस्थान वैसे तो अपनी ऐतिहासिक किलों और धरोहरों के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां की भूमि कई ऐसे स्थानों का भी गवाह है जहां देवताओं का वास होता है।
केवल यहां रहने वाले ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के लोगों की भी इनमें गहरी आस्था होती है। ऐसी ही एक जगह है कुंभलगढ़ के पास परशुराम महादेव मंदिर। वही परशुराम जिन्होंने गुस्से में आकर मां रेणुका का वध कर दिया था।
कहा जाता है कि हजारों बार इस धरती से क्षत्रियों का नाश करने वाले परशुराम के पास अद्भुत शक्ति यहीं की देन है। उन्होंने यहीं पर गुफा में शिवलिंग के सामने बैठकर कठोर तपस्या की थी।
जिसके बाद उन्हें वो शक्ति मिली जिसका तोड़ किसी अन्य के पास नहीं था। ऐसी भी मान्यता है कि जहां पर यह शिवलिंग स्थापित है उस गुफा को खुद परशुराम ने अपने फरसे से काटकर बनाया था। इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 500 सीढ़ियों से होकर जाना होता है।
राजस्थान में मेवाड़ और मारवाड़ के लिए यह स्थान किसी तीर्थ से कम नहीं। शायद यही वजह है कि हर साल लोग यहां सावन में भगवान के दर्शन करने आते हैं।
इस दौरान यहां तीन दिनों का मेला भी लगता है। खास बात यह है कि सावन के दिनों में मंदिर के चारों ओर का नजारा इतना मनोरम होता है मानो गुफा में बैठे भगवान परशुराम खुद प्रकृति की गोद में बैठ गए हों।
ऐसा बताया जाता है कि समुद्र तल से 3600 फुट ऊंचाई पर बने परशुराम महादेव मंदिर को विष्णु अवतार भगवान परशुराम ने बनाया है।
दंभ और पाखंड से धरती को त्रस्त करने वाले क्षत्रियों का संहार करने के लिए भगवान परशुराम ने इसी पहाड़ी पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग के समक्ष बैठकर तपस्या करके शक्ति प्राप्त की थी।
परशुराम ने अपने फरसे से पहाड़ी को काटकर एक गुफा का निर्माण किया जिसमें स्वयंभू शिव विराजमान हैं, जो अब परशुराम महादेव के नाम से जाने जाते हैं। यहां पास ही में सादड़ी क्षेत्र में कुछ दूर चलने पर परशुराम महादेव की बगीची है।
कहा जाता है कि यहां पर भी भगवान परशुराम ने शिवजी की आराधना की थी।
फरसे द्वारा काटकर बनाई गई गुफा में स्थित मंदिर में अनेकों मूर्तियां, शंकर, पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की बनी हुई हैं।
इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई है। जिसे परशुराम ने अपने फरशे से मारा था। परशुराम महादेव से लगभग 100 किमी दूर महर्षि जमदगनी की तपोभूमि है, जहां परशुराम का अवतार हुआ।
कुछ ही मील दूर मातृकुंडिया नामक स्थान है जहां परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा से माता रेणुका का वध किया था।
हर साल श्रावण शुक्ल षष्ठी और सप्तमी को यहां विशाल मेला लगता है। पाली नगर से लगभग 35 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में शाली का पहाडिय़ों में स्थित गुफा मंदिर में जमदगनी ऋषि ने तपस्या की थी।
जलप्रपात के नजदीक गुफा में विराजे स्वयंभू शिवलिंग की प्रथम प्राण प्रतिष्ठा परशुराम के पिता जमदगनी ने ही की थी।
शिवलिंग पर एक छिद्र बना हुआ है जिसके बारे में मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता है।
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