Monday, October 28, 2013

इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का डौंडियाखेड़ा गांव इन दिनों सुर्खियों में है। आजकल सभी की नजरें उन्नाव जिले डौंडियाखेड़ा गांव पर टिकी हुई हैं, क्योंकि शोभन सरकार नाम के महंत ने वहां एक हजार टन सोना के छुपे होने की बात कही है। ऐसे में हर कोई बड़ी हसरत से उत्तरप्रदेश के इस गोल्डेन विलेज को निहार रहा है, जहां कभी राज राव रामबक्श सिंह का किला हुआ करता था। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब बाबा शोभन सरकार के सपने को आधार मानकर पुरातत्व विभाग की टीम ने 1000 टन के सोने की खोज शुरू कर दी। सरकार से लेकर हर कोई कयास लगाये जा रहा है कि अगर हजार टन सोना देश को मिल जाता है तो भारत की तस्वीर के साथ तकदीर ही बदल जाएगी।
 
रुपया अमेरिका डॉलर के मुकाबले मूछों पर ताव मारता नजर आएगा, अर्थव्यवस्था को भी पर लग जाएंगे, भारत से गरीबी और महंगाई का कलंक भी मिट सकता है। पर शायद आपको नहीं पता कि देश में कई ऐसी गुफाएं हैं जिनमें लाखों-करोड़ों टन सोना छिपा हुआ है। बिहार में भी एक ऐसी गुफा है जिसमें लाखों टन सोना और अन्य खजाने छिपा है। ये सोना सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा छिपाए गए थे। अगर ये सोना मिल जाए तो फिर क्या कहने। लेकिन, ये सोना आखिर छिपा कहां है। चलिए हम आपको बताते हैं।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
डौंडियाखेड़ा आज भले ही सोने के खजाने को लेकर सुर्खियों में है लेकिन भारत में ऐसे कई जगह हैं, जो अकूत खजानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। सोने के खजाने से जुड़ा ऐसा ही एक मामला बिहार के एक गुफा से जुड़ा है, जिसमें लाखों टन सोना छिपा हुआ है। यह गुफा बिहार के छोटे से शहर राजगीर में है।
प्राचीन में मगध सम्राज्य की राजधानी रहा बिहार का राजगीर शहर छोटा जरूर हो सकता है, लेकिन इस शहर ने भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं देखी हैं। यही पर बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। लगभग 3-4 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध की स्मृति में बनी कई कई स्मारकों में से एक 'सोन भंडार गुफा' रहस्य और रोमांच से भरी है। किवदंतियों के मुताबिक सोन भंडार गुफा में भरा है सोने और बहुमूल्य खजाने का भंडार।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
बिहार के छोटे शहर राजगीर में जहां भगवान बुद्ध ने सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था, उन्ही की याद में बनी स्मारकों में से एक है सोन भंडारगुफा, जो दो चट्टानों के बीच वैभर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस तरह की गुफाएं हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। वैभर पहाड़ी के समीप स्थित पश्चिमी गुफा में एक ऐसा स्मारक है जिसे सोन भंडार गुफा (अर्थात खजाने का अकूत भंडार) भी कहा जाता है, जिसमें छिपी है बेशुमार दौलत। लेकिन इस गुफा में जाने का क्या है रास्ता? इस बारे में किसी को कुछ भी नहीं मालूम।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!


ऐसा माना जाता है कि खजाना एक 10.4x5.2 मीटर आयाताकार मजबूत कोठरी में कैद है, जिसका रास्ता शायद किसी को पता नहीं। गुंबद की भीतरी छत सीधे दीवारों के सहारे 1.5 मीटर ऊंची है, जो चट्टानों को काटकर बनाई गई मौर्यकालीन गर्भगृहों जैसी दिखाई पड़ती है।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
सोन भंडार गृह के पास ही उस जैसी और गुफाएं है जिन्हे बराबर की गुफाएं कहा जाता है। इन गुफाओं के कमरे भी सोन भंडार गुफा की तरह ही बनाये गये हैं। भारत में बहुत से ऐसे गुफा मंदिर हैं जिन्हे असाधारण कृतियों के लिए जाना जाता है। 5-6 वीं सेंचुरी में इन गुफाओं के अंदर और बाहर कई तरह के अभिलेख पाये जाते हैं, जो मोस्टली विभिन्न तीर्थयात्रियों द्वारा अंकित किये जाते रहे हैं। जैसी भगवान विष्णु की मूर्तियां आज नालंदा के म्युजियम में हैं, वैसी ही मूर्तियां गुफाओं के पास पाई जाती हैं, जो इस घटना की तरफ इशारा करती हैं कि 7वीं सेंचुरी में विष्णु की पूजा जाती रही है।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
किवदंतियों के मुताबिक, गुफाओं की असाधारण बनावट ही लाखों टन सोने के खजाने की सुरक्षा करती हैं। इन गुफाओं में छिपे खजाने तक एंट्री का रास्ता एक बड़े प्राचीन पत्थर के पीछे से होकर जाता है। कुछ का मानना है कि खजाने तक पहुंचने का रास्ता वैभरगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णि गुफाओं तक जाता है जो सोन भंडार गुफा के दूसरी तरफ तक पहुंचता है। कुछ लोगों का मानना है ये खजाना पूर्व मगध सम्राट जरासंध का है तो कुछ का मानना है कि यह खजाना मौर्यशासक बिम्बिसार का था।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

अगर इस गुफे में छुपे खजानों की तलाश की जाए तो देश की आर्थिक स्थिति में न सिर्फ सुधार होगा, बल्कि भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश के रूप में भी उभर कर सामने आ जाएगा।

Monday, October 21, 2013

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
उदयपुर. चीन के दीवार का नाम विश्व में सभी जानते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो सीधे तौर पर चीन के दीवार को टक्कर देती है। जिसे भेदने की कोशिश महान राजा अकबर ने भी किया लेकिन भेद न सके। जिसके दीवार की मोटाई इतनी है कि उस पर 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।
राजस्थान की भूमि ने अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया है। यहां पग पग पर वीरों के अद्मय साहस और पराक्रम की कहानियां हैं। इन वीरों की तहर यहां के किले भी बहुत मशहूर हैं। 'किले की कहानी' सीरीज में आज आपको बताएगा कि ऐसे कई सारे अद्भुत रहस्यों से भरी है इस किले के दीवार की कहानी।
कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार
किले के दीवार की निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया लेकिन, जैसे जैसे  दीवारों का निर्माण आगे बढ़ा वैसे-वैसे दीवारें रास्ता देते चली गई। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके। लेकिन दीवारें थी की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर कारिगरों ने राजा को बताया कि यहां पर किसी देवी का वास है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस किले के लिए चढ़ाई गई संत की बलि
देवी कुछ और ही चाहती हैं। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया और सारा गथा सुनाकर इसका हल पूछा। संत ने बताया कि देवी इस काम को तभी आगे बढ़ने देंगी जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है। यह किला चारो तरफ से अरावली की पहाड़ियों की मजबूत ढाल द्वारा सुरक्षित है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसका निर्माण पंद्रहवी सदी में राणा कुम्भा ने करवाया था। पर्यटक किले के ऊपर से आस पास के रमणीय दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। शत्रुओं से रक्षा के लिए इस किले के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि चीन की महान दीवार के बाद यह एक सबसे लम्बी दीवार है। यह किला 1,914 मीटर की ऊंचाई पर समुद्र स्तर से परे क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया है। इस किले के निर्माण को पूरा करने में 15 साल का समय लागा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
दस घोड़े एक साथ दौड़ते है इसके दीवार पर
महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़ों को एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करता था।
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यहां है बादलों का महल
बादल महल को ‘बादलों के महल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुम्भलगढ़ किले के शीर्ष पर स्थित है। इस महल में दो मंजिलें हैं एवं यह संपूर्ण भवन दो आतंरिक रूप से जुड़े हुए खंडों, मर्दाना महल और जनाना महल में विभाजित हैं। इस महल के कमरों के दीवारों पर सुंदर दृश्यों को अंगित किया गया है जो उन्नीसवीं शताब्दी के काल को प्रदर्शित करते हैं। 
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उस समय भी होता था एसी का प्रयोग
आज भी एसी का प्रयोग कर ऑफिसों में पाइपों के द्वारा ठंढ़क पहूंचाई जाती है। उस समय भी महल के इस परिसर में रचनात्मक वातानुकूलन प्रणाली लगा हुआ था जो आज भी है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है जिसे देखना एक दिलचस्प बात है। इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुंदर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है और साथ ही कमरों को नीचे से भी ठंडा करती हैं। पर्यटक जनाना महल में पत्थरों की जालियों से बाहर का नजारा देख सकते हैं। ये जालियां रानीयों द्वारा दरबार की कार्यवाही को देखने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
घूमने के लिए फुल पैकेज है कुम्भलगढ़
कुम्भलगढ़ अपने शानदार महलों के अतिरिक्त कई प्राचीन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। उनमें से वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, मुच्छल महादेव मंदिर, परशुराम मंदिर, मम्मादेव मंदिर और रणकपुर जैन मंदिर इस पर्यटन स्थल के मुख्य पवित्र स्थल हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
वन अभ्यारण्य के लिए है फेमस
कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य, चार सींगों वाले हिरन या चौसिंघा, काला तेंदुआ,जंगली सूअर, भेड़ियों, भालू, सियार, सांभर हिरन, चिंकारा, तेंदुओं,लकड़बघ्घों, जंगली बिल्ली, नीलगाय और खरगोश देखने के लिए आदर्श स्थल है। राज्य में केवल इस अभ्यारण्य में ही पर्यटक भेड़ियों को देख सकते हैं। हल्दीघाटी और घणेरो कुम्भलगढ़ के पर्यटन के लिए अन्य प्रसिद्ध आकर्षण हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी न मार सके पैर
सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है।
यहां का लाइट और साउंड शो है सबसे फेमस
किले के अंदर प्रवेश के लिए सात द्वार बने हुए हैं जिसमें, राम द्वार, पग्र द्वार, हनुमान द्वार आदि फेमस हे। इस किले के अंदर कुल 360 मंदिरों का समूह है जिसमें, 300 जैन मंदिर और 60 हिन्दू मंदिर हैं। इनमें से नीलकंठ महादेव के मंदिर का महत्व अन्य मंदिरों से ज्यादा है। इस मंदिर के पास देर शाम होने वाले लाइट और साउंड शो की अपनी एक अलग पहचान है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस शो में बेहद खूबसूरती से कुंभलगढ़ किला के पूरे इतिहास के बारे में बताया जाता है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घोड़ों के दौडऩे और बंदूकों की गोलियों की आवाज आज भी लोगों को प्रचीन समय का आभास कराता है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसे बनाते समय रखा गया वास्तु शास्त्र का ध्यान
वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर,जलाशय, बहार जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
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सिर्फ एक बार छाया किले पर हार का साया
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
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जिसे कोई और न मार सका उसके बेटे ने ही ले ली जान
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्विराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
धोखा देने पर चुनवा दिया दीवार में
कुछ समय बाद जब राजा को उस महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने तीनों को किले के द्वार पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया। ऐसा कर राजा ने लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के सुरक्षा के साथ जो भी खिलवाड़ करेगा उसका यही अंजाम होगा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
यहां पहूंचना है बेहद आसान
कुम्भलगढ़ किला उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर की दूरी पर है। उदयपुर शहर से कुम्भलगढ़ किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पर्यटक आसानी से रेलमार्ग, वायुमार्ग या सडक द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं।