Monday, August 19, 2013

इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस

क्या महम कस्बे के दक्षिण में सदियों पहले बनी बावड़ी में अरबों रूपए का खजाना छुपा हुआ है? क्या इसमें बिछा सुरंगों का जाल दिल्ली, हिसार और लाहौर तक जाता है? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो आज भी लोगों के लिए रहस्य बने हुए हैं। मुगलकाल की यादों व रहस्यों को अपने अंदर समेटे इस बावड़ी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है लेकिन आज तक इस गुत्थी को कोई सुलझा नहीं पाया।

स्थानीय लोगों का मानना है कि इसमें अरबों का खजाना है। ज्ञानी चोर के नाम से मशहूर महम की ये ऐतिहासिक बावड़ी हमें आज भी मुगलकाल के वक्त की याद दिलाती है। फिलहाल ये सरकार व पुरातत्व विभाग की अनदेखी का शिकार है। स्थानीय लोग भी इस बारे में प्रशासन से कई बार गुहार लगा चुके हैं लेकिन नतीजा शिफर ही रहा।

इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस
बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख के अनुसार इस स्वर्ग के झरने का निर्माण उस समय के मुगल राजा शाहजहां के चैबदार सैद्यू कलाल ने 1069 एएच यानि 1658-59 एडी में करवाया था। यह बावड़ी विशाल है। इसमें एक कुआं है जिस तक पहुंचने के लिए 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं। इसमें कई कमरे भी हैं, जो कि उस जमाने में राहगीरों के आराम के लिए बनवाए गए थे। स्थानीय लोगों की मानें तो इसमें सुरंगों का जाल है जो कि दिल्ली और लाहौर तक जाता है। मगर रहस्य आज भी बरकरार है। लोगों का मानना है कि इसमें अरबों का खजाना है। सरकार द्वारा उचित देखभाल न किए जाने के कारण यह बावड़ी मिट्टी में मिलने को बेताब है। इसके बुर्ज व मंडेर गिर चुके हैं। कुएं के अंदर स्थित पानी काला पड़ चुका है।
पानी के अंदर गंदगी व अन्य तरह की वस्तुएं तैरती हुई देखी जा सकती हैं। सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। चमगादड़ों ने नीचे जाने वाली सीढिय़ों में अपना डेरा जमा लिया है। लोहे के दरवाजे जाम हो चुके हैं। जगह-जगह से टूटने के कारण छोटी ईंटों का मलबा बावड़ी के अंदर बेतरतीब तरीके से पड़ा है। इस बारे में जब इतिहासकारों से बातचीत की तो उन्होंने भी इसके खस्ताहाल पर चिंता जताई और कहा कि पुरातत्व विभाग के अंतर्गत होने के बावजूद भी इसकी देखभाल नहीं की जा रही है। इस बावड़ी को ज्ञानी चोर की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। लोगों का कहना है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था जो धनवानों का लूटता और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता और अगले दिन फिर राहजनी के लिए निकल आता था।
इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस 
लोगों का यह अनुमान है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बावड़ी में मौजूद है।  लोक मान्यताओं के अनुसार ज्ञानी चोर का अरबों का खजाना इसी में दफन है। जो भी इस खजाने की खोज में अंदर गया वो इस बावड़ी की भूलभुलैया में खो गया और खुद एक रहस्य हो गया। लोगों का कहना है कि उस समय का प्रसिद्व ज्ञानी चोर चोरी करने के बाद पुलिस से बचने के लिए यहीं आकर छुपता था। कई जानकार इस जगह को सेनाओं की आरामगाह बताते हैं। उनका कहना है कि रजवाड़ों में आपसी लड़ाई के बाद राजाओं की सेना यहां रात को विश्राम करती थी। छांव व पानी की सुविधा होने के कारण यह जगह उनके लिए सुरक्षित थी।
 
लेकिन इतिहासकारों की माने तो ज्ञानी चोर के चरित्र का जिक्र इतिहास में कहीं नहीं मिलता। अत: खजाना तो दूर की बात है। इतिहासकार डॉ. अमर सिंह ने कहा कि पुराने जमाने में पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बावडिय़ां बनाई जाती थीं। लोगों का कहना है कि इतिहासकारों को चाहिए कि बावड़ी से जुड़ी लोकमान्यताओं को ध्यान में रखकर अपनी खोजबीन फिर नए सिरे से शुरू करें ताकि इस बावड़ी की तमाम सच्चाई जमाने के सामने आ सके। कहने को तो ये बावड़ी पुरातत्व विभाग के अधीन है मगर 352 सालों से कुदरत के थपेड़ों ने इसे कमजोर कर दिया है। जिसके चलते इसकी एक दीवार गिर गई है और दूसरी कब गिर जाए इसका पता नहीं। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार प्रशासन से इसकी मरम्मत करवाने की गुहार लगा चुके हैं।
इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस
ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से आसपास के क्षेत्र में लोकप्रिय हो चुकी बावड़ी जमीन में कई फुट नीचे तक बनी हुई है। इसमें एक कुआं है। कुएं के उपरी सिरे पर एक पत्थर लगा हुआ है। जानकारों का कहना है कि इस पर फारसी भाषा में ‘स्वर्ग का झरना' लिखा हुआ है। किवदंती है कि अंग्रेजों के समय में एक बारात सुरंगों के रास्ते दिल्ली जाना चाहती थी। कई दिन बीतने के बाद भी सुरंग में उतरे बाराती न तो दिल्ली ही पहुंच पाए और न ही वापस निकले। किसी अनहोनी घटना के चलते अंग्रेजों ने इन गुफाओं को बंद कर दिया। ये अभी भी बंद पड़ी हैं।
इस भूल भुलैया में दफन है अरबों का खजाना, जो भी गया अंदर नहीं लौटा वापस

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