Monday, October 28, 2013

इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का डौंडियाखेड़ा गांव इन दिनों सुर्खियों में है। आजकल सभी की नजरें उन्नाव जिले डौंडियाखेड़ा गांव पर टिकी हुई हैं, क्योंकि शोभन सरकार नाम के महंत ने वहां एक हजार टन सोना के छुपे होने की बात कही है। ऐसे में हर कोई बड़ी हसरत से उत्तरप्रदेश के इस गोल्डेन विलेज को निहार रहा है, जहां कभी राज राव रामबक्श सिंह का किला हुआ करता था। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब बाबा शोभन सरकार के सपने को आधार मानकर पुरातत्व विभाग की टीम ने 1000 टन के सोने की खोज शुरू कर दी। सरकार से लेकर हर कोई कयास लगाये जा रहा है कि अगर हजार टन सोना देश को मिल जाता है तो भारत की तस्वीर के साथ तकदीर ही बदल जाएगी।
 
रुपया अमेरिका डॉलर के मुकाबले मूछों पर ताव मारता नजर आएगा, अर्थव्यवस्था को भी पर लग जाएंगे, भारत से गरीबी और महंगाई का कलंक भी मिट सकता है। पर शायद आपको नहीं पता कि देश में कई ऐसी गुफाएं हैं जिनमें लाखों-करोड़ों टन सोना छिपा हुआ है। बिहार में भी एक ऐसी गुफा है जिसमें लाखों टन सोना और अन्य खजाने छिपा है। ये सोना सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा छिपाए गए थे। अगर ये सोना मिल जाए तो फिर क्या कहने। लेकिन, ये सोना आखिर छिपा कहां है। चलिए हम आपको बताते हैं।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
डौंडियाखेड़ा आज भले ही सोने के खजाने को लेकर सुर्खियों में है लेकिन भारत में ऐसे कई जगह हैं, जो अकूत खजानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। सोने के खजाने से जुड़ा ऐसा ही एक मामला बिहार के एक गुफा से जुड़ा है, जिसमें लाखों टन सोना छिपा हुआ है। यह गुफा बिहार के छोटे से शहर राजगीर में है।
प्राचीन में मगध सम्राज्य की राजधानी रहा बिहार का राजगीर शहर छोटा जरूर हो सकता है, लेकिन इस शहर ने भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं देखी हैं। यही पर बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। लगभग 3-4 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध की स्मृति में बनी कई कई स्मारकों में से एक 'सोन भंडार गुफा' रहस्य और रोमांच से भरी है। किवदंतियों के मुताबिक सोन भंडार गुफा में भरा है सोने और बहुमूल्य खजाने का भंडार।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
बिहार के छोटे शहर राजगीर में जहां भगवान बुद्ध ने सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था, उन्ही की याद में बनी स्मारकों में से एक है सोन भंडारगुफा, जो दो चट्टानों के बीच वैभर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस तरह की गुफाएं हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। वैभर पहाड़ी के समीप स्थित पश्चिमी गुफा में एक ऐसा स्मारक है जिसे सोन भंडार गुफा (अर्थात खजाने का अकूत भंडार) भी कहा जाता है, जिसमें छिपी है बेशुमार दौलत। लेकिन इस गुफा में जाने का क्या है रास्ता? इस बारे में किसी को कुछ भी नहीं मालूम।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!


ऐसा माना जाता है कि खजाना एक 10.4x5.2 मीटर आयाताकार मजबूत कोठरी में कैद है, जिसका रास्ता शायद किसी को पता नहीं। गुंबद की भीतरी छत सीधे दीवारों के सहारे 1.5 मीटर ऊंची है, जो चट्टानों को काटकर बनाई गई मौर्यकालीन गर्भगृहों जैसी दिखाई पड़ती है।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
सोन भंडार गृह के पास ही उस जैसी और गुफाएं है जिन्हे बराबर की गुफाएं कहा जाता है। इन गुफाओं के कमरे भी सोन भंडार गुफा की तरह ही बनाये गये हैं। भारत में बहुत से ऐसे गुफा मंदिर हैं जिन्हे असाधारण कृतियों के लिए जाना जाता है। 5-6 वीं सेंचुरी में इन गुफाओं के अंदर और बाहर कई तरह के अभिलेख पाये जाते हैं, जो मोस्टली विभिन्न तीर्थयात्रियों द्वारा अंकित किये जाते रहे हैं। जैसी भगवान विष्णु की मूर्तियां आज नालंदा के म्युजियम में हैं, वैसी ही मूर्तियां गुफाओं के पास पाई जाती हैं, जो इस घटना की तरफ इशारा करती हैं कि 7वीं सेंचुरी में विष्णु की पूजा जाती रही है।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
किवदंतियों के मुताबिक, गुफाओं की असाधारण बनावट ही लाखों टन सोने के खजाने की सुरक्षा करती हैं। इन गुफाओं में छिपे खजाने तक एंट्री का रास्ता एक बड़े प्राचीन पत्थर के पीछे से होकर जाता है। कुछ का मानना है कि खजाने तक पहुंचने का रास्ता वैभरगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णि गुफाओं तक जाता है जो सोन भंडार गुफा के दूसरी तरफ तक पहुंचता है। कुछ लोगों का मानना है ये खजाना पूर्व मगध सम्राट जरासंध का है तो कुछ का मानना है कि यह खजाना मौर्यशासक बिम्बिसार का था।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

अगर इस गुफे में छुपे खजानों की तलाश की जाए तो देश की आर्थिक स्थिति में न सिर्फ सुधार होगा, बल्कि भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश के रूप में भी उभर कर सामने आ जाएगा।

Monday, October 21, 2013

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
उदयपुर. चीन के दीवार का नाम विश्व में सभी जानते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो सीधे तौर पर चीन के दीवार को टक्कर देती है। जिसे भेदने की कोशिश महान राजा अकबर ने भी किया लेकिन भेद न सके। जिसके दीवार की मोटाई इतनी है कि उस पर 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।
राजस्थान की भूमि ने अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया है। यहां पग पग पर वीरों के अद्मय साहस और पराक्रम की कहानियां हैं। इन वीरों की तहर यहां के किले भी बहुत मशहूर हैं। 'किले की कहानी' सीरीज में आज आपको बताएगा कि ऐसे कई सारे अद्भुत रहस्यों से भरी है इस किले के दीवार की कहानी।
कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार
किले के दीवार की निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया लेकिन, जैसे जैसे  दीवारों का निर्माण आगे बढ़ा वैसे-वैसे दीवारें रास्ता देते चली गई। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके। लेकिन दीवारें थी की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर कारिगरों ने राजा को बताया कि यहां पर किसी देवी का वास है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस किले के लिए चढ़ाई गई संत की बलि
देवी कुछ और ही चाहती हैं। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया और सारा गथा सुनाकर इसका हल पूछा। संत ने बताया कि देवी इस काम को तभी आगे बढ़ने देंगी जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है। यह किला चारो तरफ से अरावली की पहाड़ियों की मजबूत ढाल द्वारा सुरक्षित है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसका निर्माण पंद्रहवी सदी में राणा कुम्भा ने करवाया था। पर्यटक किले के ऊपर से आस पास के रमणीय दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। शत्रुओं से रक्षा के लिए इस किले के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि चीन की महान दीवार के बाद यह एक सबसे लम्बी दीवार है। यह किला 1,914 मीटर की ऊंचाई पर समुद्र स्तर से परे क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया है। इस किले के निर्माण को पूरा करने में 15 साल का समय लागा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
दस घोड़े एक साथ दौड़ते है इसके दीवार पर
महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़ों को एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करता था।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
यहां है बादलों का महल
बादल महल को ‘बादलों के महल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुम्भलगढ़ किले के शीर्ष पर स्थित है। इस महल में दो मंजिलें हैं एवं यह संपूर्ण भवन दो आतंरिक रूप से जुड़े हुए खंडों, मर्दाना महल और जनाना महल में विभाजित हैं। इस महल के कमरों के दीवारों पर सुंदर दृश्यों को अंगित किया गया है जो उन्नीसवीं शताब्दी के काल को प्रदर्शित करते हैं। 
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उस समय भी होता था एसी का प्रयोग
आज भी एसी का प्रयोग कर ऑफिसों में पाइपों के द्वारा ठंढ़क पहूंचाई जाती है। उस समय भी महल के इस परिसर में रचनात्मक वातानुकूलन प्रणाली लगा हुआ था जो आज भी है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है जिसे देखना एक दिलचस्प बात है। इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुंदर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है और साथ ही कमरों को नीचे से भी ठंडा करती हैं। पर्यटक जनाना महल में पत्थरों की जालियों से बाहर का नजारा देख सकते हैं। ये जालियां रानीयों द्वारा दरबार की कार्यवाही को देखने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
घूमने के लिए फुल पैकेज है कुम्भलगढ़
कुम्भलगढ़ अपने शानदार महलों के अतिरिक्त कई प्राचीन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। उनमें से वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, मुच्छल महादेव मंदिर, परशुराम मंदिर, मम्मादेव मंदिर और रणकपुर जैन मंदिर इस पर्यटन स्थल के मुख्य पवित्र स्थल हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
वन अभ्यारण्य के लिए है फेमस
कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य, चार सींगों वाले हिरन या चौसिंघा, काला तेंदुआ,जंगली सूअर, भेड़ियों, भालू, सियार, सांभर हिरन, चिंकारा, तेंदुओं,लकड़बघ्घों, जंगली बिल्ली, नीलगाय और खरगोश देखने के लिए आदर्श स्थल है। राज्य में केवल इस अभ्यारण्य में ही पर्यटक भेड़ियों को देख सकते हैं। हल्दीघाटी और घणेरो कुम्भलगढ़ के पर्यटन के लिए अन्य प्रसिद्ध आकर्षण हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी न मार सके पैर
सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है।
यहां का लाइट और साउंड शो है सबसे फेमस
किले के अंदर प्रवेश के लिए सात द्वार बने हुए हैं जिसमें, राम द्वार, पग्र द्वार, हनुमान द्वार आदि फेमस हे। इस किले के अंदर कुल 360 मंदिरों का समूह है जिसमें, 300 जैन मंदिर और 60 हिन्दू मंदिर हैं। इनमें से नीलकंठ महादेव के मंदिर का महत्व अन्य मंदिरों से ज्यादा है। इस मंदिर के पास देर शाम होने वाले लाइट और साउंड शो की अपनी एक अलग पहचान है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस शो में बेहद खूबसूरती से कुंभलगढ़ किला के पूरे इतिहास के बारे में बताया जाता है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घोड़ों के दौडऩे और बंदूकों की गोलियों की आवाज आज भी लोगों को प्रचीन समय का आभास कराता है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसे बनाते समय रखा गया वास्तु शास्त्र का ध्यान
वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर,जलाशय, बहार जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
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सिर्फ एक बार छाया किले पर हार का साया
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
जिसे कोई और न मार सका उसके बेटे ने ही ले ली जान
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्विराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
धोखा देने पर चुनवा दिया दीवार में
कुछ समय बाद जब राजा को उस महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने तीनों को किले के द्वार पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया। ऐसा कर राजा ने लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के सुरक्षा के साथ जो भी खिलवाड़ करेगा उसका यही अंजाम होगा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
यहां पहूंचना है बेहद आसान
कुम्भलगढ़ किला उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर की दूरी पर है। उदयपुर शहर से कुम्भलगढ़ किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पर्यटक आसानी से रेलमार्ग, वायुमार्ग या सडक द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं।

Thursday, September 26, 2013

जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....

PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
जयपुर। दुनिया में सबसे अधिक किले और गढ़ यदि कहीं हैं तो वो राजस्थान में। राजस्थान के किसी भी हिस्से में चले जाइए, कोई न कोई दुर्ग या किला सीना ताने आपका इंतजार करता हुआ मिल जाएगा। आज हम बात करत हैं एक ऐसे ही दुर्ग की। जो अपनी खासियतों के कारण पूरी दुनिया में ख्यात है। इस किले का नाम है गागरोन। झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर नदी होने से घिरा हुआ है। जिसके कारण इसका नाम ही पड़ गया जल-दुर्ग।
कालीसिंध व आहू नदी के संगम स्थल पर बना यह दुर्ग आसपास की हरी भरी पहाडिय़ों की वजह से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। गागरोन दुर्ग का विहंगम नजारा पीपाधाम से काफी लुभाता है। इन स्थानों पर लोग आकर गोठ पार्टियां करते हैं। लोगों के लिए यह बेहतर पिकनिक स्पॉट है।
गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है। सैकड़ों बरस पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जौहर कर दिया था। सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था। इलाके में आज भी इन महिलाओं की बहादुरी के किस्से चर्चित हैं।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
इस शानदार धरोहर को कुछ महीने पहले ही यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया है। इसके अलावा प्रदेश के पांच अन्य पहाड़ी किलों (दुर्ग) को भी शामिल किया गया है। इनमें आमेर महल, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़ हैं। अब प्रदेश की आठ धरोहर दुनिया के नक्शे पर आ गई हैं। भरतपुर का घना पक्षी अभयारण्य और जयपुर का जंतर-मंतर सूची में पहले से ही हैं।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
अब गागरोन किले में यूनेस्को की टीम का सितंबर में आना प्रस्तावित है। गागरोन किले को विश्व धरोहर बनाए जाने के बाद यह टीम पहली बार झालावाड़ पहुंचेगी। टीम के सदस्य गागरोन किले में जाकर पर्यटकों के लिए किए गए विकास कार्य और सुविधाओं का जायजा लेंगे।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
गागरोन का किला झालावाड़ से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित है। 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ यह किला जल-दुर्ग होने के साथ साथ पहाड़ी दुर्ग भी है। यह एक ओर पहाड़ी तो तीन ओर से जल से घिरा हुआ है। किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था।
 PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
किले के अंदर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं।

भानगढ़ राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य

राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भानगढ़ किले के रातों रात खंडहर में तब्दील हो जाने के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। इन किस्सों को सुनकर लोग मायावी और रहस्यों से भरे इस किले की ओर खिंचे चले आते हैं। सूर्यास्त से पहले इस खंडहर में लोग घूमते टहलते मिल जाएंगे। लेकिन 6 बजे के बाद यहां आने वालों का हाथ पकड़कर किले के बाहर कर दिया जाता हैं। किले की एक दीवार पर भारतीय पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा हैं। इस पर साफ साफ शब्दों में लिखा है सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित हैं। 


राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का नेशनल पार्क के एक छोर पर खड़ा है खंडहरनुमा भानगढ़। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
भानगढ़ का किला चारों ओर से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है, कहते है ये भानगढ़ का जौहरी बाजार था।जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनी दो मंजिला दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है। लेकिन तीनों मंजिल लगभग पूरी तरह ढेर हो चुकी है।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
चहारदीवारी के अंदर कई दूसरी इमारतों के खंडहर बिखरे पड़े हैं। इनमें से एक में तवायफें रहा करती थीं और इसे रंडियों के महल के नाम से जाना जाता है। किले के अंदर बने मंदिरों में गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगलादेवी और केशव मंदिर मिल जाएंगे। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बावली है। जिसे अब भी लोग अपने मुताबिक इस्तेमाल करते हैं। चाहे नहाना हो या कपड़े धोना..
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
खंडहर बना भानगढ़ एक शानदार अतीत के बर्बादी की दुखद दास्तान है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं बची है। लेकिन हैरानी की बात है कि इसके मंदिर पूरी तरह महफूज है। इन मंदिरों की दीवारों और खंभों पर की गई नक्काशी इत्तला करती है कि यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा?

राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
माधो सिंह के बाद उसका बेटा छतर सिंह भानगढ़ का राजा बना। छतरसिंह 1630 में लड़ाई के मैदान में मारा गया। उसकी मौत के साथ ही भानगढ़ की रौनक घटने लगी। छतर सिंह के बेटे अजब सिंह ने नजदीक में ही अजबगढ़ (अजबगढ़ की कहानी अगले भाग में )का किला बनवाया और वहीं रहने लगा। आमेर के राजा जयसिंह ने 1720 में भानगढ़ को जबरन अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस समूचे इलाके में पानी की कमी तो थी ही। लेकिन 1783 के अकाल में यह किला पूरी तरह उजड़ गया।
भानगढ़ के बारे में जो अफवाहें और किस्से हवा में उड़ते हैं। उनके मुताबिक इस इलाके में सिंघिया नाम का एक तांत्रिक रहता था। उसका दिल भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती पर आ गया। जिसकी सुंदरता समूचे राजपुताना में बेजोड़ थी।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की एक दासी को बाजार में खुशबूदार तेल खरीदते देखा। सिंघिया ने तेल पर टोटका कर दिया ताकि राजकुमारी उसे लगाते ही तांत्रिक की ओर खिंची चली आए। लेकिन शीशी रत्नावती के हाथ से फिसल गई और सारा तेल एक बड़ी चट्टान पर गिर गया। टोटके की वजह से चट्टान को ही तांत्रिक से प्रेम हो गया और वह सिंघिया की ओर लुढ़कने लगा।
चट्टान के नीचे कुचल कर मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि मंदिरों को छोड़ कर समूचा किला जमींदोज हो जाएगा और राजकुमारी समेत भानगढ़ के निवासी मारे जाएंगे। आसपास के गांवों के लोग मानते हैं कि सिंघिया के शाप की वजह से ही किले के अंदर की सभी इमारतें रातों रात ध्वस्त हो गई। यहां रहने वालों को यकीन है कि रत्नावती और भानगढ़ के बाकी निवासियों की रूहें अब भी किले में भटकती हैं। इसके अलावा रात के वक्त इन खंडहरों में जाने वाला कभी वापस नहीं आता।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सूरज ढलने के बाद और उसके उगने से पहले किले के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा रखी है। दिन में भी इसके अंदर खामोशी पसरी रहती है। कई सैलानियों का कहना है कि खंडहरों के बीच से गुजरते हुए उन्हें अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। किले के एक छोर पर केवड़े की झाडिय़ां हैं। हवा जब तेज चलती है तो केवड़े की खुशबू चारों तरफ फैल जाती हैं और किले का रहस्य और भी गाढ़ा हो जाता हैं।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने किले के अंदर मरम्मत का कुछ काम किया है। लेकिन निगरानी की व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण इसके बरबाद होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। किले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कोई दफ्तर नहीं है। दिन में कोई चौकीदार भी नहीं होता। पूरा किला बाबाओं और तांत्रिकों के हवाले रहता है।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले में बेपरवाह तांत्रिक बेरोकटोक अपने अनुष्ठान करते हैं। आग की वजह से काली पड़ी दीवारें और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के टूटे फूटे बोर्ड किले में उनकी अवैध कारगुजारियों के सबूत हैं। दिलचस्प बात यह है कि भानगढ़ के किले के अंदर मंदिरों में पूजा नहीं की जाती।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले में स्थित गोपीनाथ मंदिर में तो कोई मूर्ति भी नहीं है। तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए अक्सर उन अंधेरे कोनों और तंग कोठरियों का इस्तेमाल करते है। जहां तक आम तौर पर सैलानियों की पहुंच नहीं होती। किले के बाहर पहाड़ पर बनी एक छतरी तांत्रिकों की साधना का प्रमुख अड्डा बताई जाती है। इस छतरी के बारे में कहा जाता है कि तांत्रिक सिंघिया वहीं रहा करता था।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले के खंडहरों में टंगी सिंदूर से रंगी अजीबोगरीब शक्लों वाली मूर्तियां कमजोर दिलवाले को भूतों के होने का अहसास करा देती हैं।किले में कई जगह राख के ढेर, पूजा के सामान, चिमटों और त्रिशूलों के अलावा लोहे की मोटी जंजीरें भी मिलती हैं। ऐसा लगता है कि इन जंजीरों का इस्तेमाल उन्मादग्रस्त लोगों को बांधने के लिए किया जाता है। ऐसे ही तमाम राजो रहस्यों को समेटे यह किला अपने सुंदर अतीत पर खंडहर की शक्ल में रोता तांत्रिकों का अड्डा बन बैठा हैं।

भगवान ने दिया है इन पत्थरों को ऐसा वरदान कि सुन चौंक जायेंगे आप!

भगवान ने दिया है इन पत्थरों को ऐसा वरदान कि सुन चौंक जायेंगे आप!
बिलासपुर. संगीत किसी भी प्रकार का हो, लोगों की रूचि के अनुसार वह उन्हें पसंद होता है। समय और परिस्थितियों के अनुसार संगीत सुनना बदलता रहता है। आपने वाद्य यंत्रों से निकलता संगीत तो बहुत सुना होगा लेकिन क्या कभी पत्थरो से संगीत निकलता सुना है? शायद नहीं! लेकिन ये सच है दुनिया का सबसे अद्भुत करिश्मा हो रहा है छत्तीसगढ़ के बस्तर में जहां पत्थरों से निकलती है घंटियों की आवाज।
 
यह सुनकर हर कोई अचरज में पड़ जाता है इसके पीछे क्या वजह है कोई नहीं जानता लेकिन श्रद्धालु इसे मां दंतेश्वरी का आशीर्वाद मानते हैं। इसके अलावा यहाँ एक ऐसा तालाब है जो कभी सूखता ही नहीं। माना जाता है कि यहाँ बहुत बड़ा खजाना है जिसकी रक्षा नाग- नागिन का जोड़ा करता है।
 
तो आइये जाने इस टीले और तालाब का क्या है रहस्य, बताते हैं कि एक बार बस्तर के राजा प्रवीर चंद भंजदेव की नानी श्याम कुमारी देवी अपने महाराज से रुष्ट हो गई और उन्होंने अपने महारज समेत अपने राजपाट का परित्याग कर दिया। उसके बाद चंद सैनिकों को लेकर रानी श्याम कुमारी देवी इसी गांव में आकर बस गई। उनके आने से ही इस गांव का नाम शामपुर पड़ गया। यहां आकर रानी श्याम कुमारी ने अपने कुलगुरु भैरम देव की स्थापना की जो आज एक टीले के रूप में हो गया है।

भगवान ने दिया है इन पत्थरों को ऐसा वरदान कि सुन चौंक जायेंगे आप!

एक दिन मां दंतेश्वरी ने रानी श्याम कुमारी देवी के सपनों में आकर उन्हें दर्शन दिया। मां दंतेश्वरी के दर्शन पाकर रानी बहुत खुश हुई। पेयजल की व्यवस्था के लिए रानी ने अपने सैनिकों को एक तालाब खोदने का आदेश दिया और सैनकों ने एक ही रात में इस पहाड़ पर एक तालाब खोद डाला।

बताते हैं कि तब से लेकर आज तक इस तालाब में कभी पानी की कमी नहीं हुई हमेशा भरा रहता है। इसके पीछे मां दंतेश्वरी का आशीर्वाद बताया जा रहा है।यहां के एक पुजारी ने बताया है कि पिछले 60-70 वर्षो से उनके पूर्वज इस मंदिर में पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
भगवान ने दिया है इन पत्थरों को ऐसा वरदान कि सुन चौंक जायेंगे आप!
पुजारी ने बताया कि जब यहां रानी श्याम कुमारी जब रूठकर आईं थी तो अपने साथ कुछ सैनिकों को ले आईं थी जो जब कहीं दूर जाते तो पत्थरो को टक्कर मारती तो उससे उत्पन होती ध्वनि जो घंटियों के समान बजती है।सैनिक इसे सुनकर वापस लौट आते थे।

भगवान ने दिया है इन पत्थरों को ऐसा वरदान कि सुन चौंक जायेंगे आप!

रानी श्याम कुमारी देवी के सपने में आकर मां ने उन्हें राजमहल लौट जाने की सलाह दी लेकिन वह दोबारा राजमहल लौट कर नहीं गई।
आज भी मंदिर के पास पत्थरों में मां दंतेश्वरी के पदचिन्ह साफ देखे जा सकते हैं। एक बार की बात है कि यहाँ कुछ ग्रामीण तालाब की खुदाई करने लगे तो अचानक तालाब से खजाना निकलने लगा। कहते हैं कि यहाँ महारानी द्वारा लाया गया खजाना भी दबा है। जिसकी रक्षा नाग-नागिन का एक जोड़ा करता है जो अक्सर लोगों को तालाब के आस-पास दिखता है। कहते हैं कि इस तालाब में स्नान करके भैरमदेव की पूजा-अर्चना करने के पश्चात यदि कोई मनुष्य 11 बार इस पत्थर को बजाता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Wednesday, August 21, 2013

तस्वीर देखते ही पिता के दुश्मन की हो गई दीवानी, मूर्ती को पहना दी वरमाला

राजस्थान की धरा वीरो की शौर्य और बलिदान के लिए मशहूर है। यहां के योद्धाओं की गाथाएं आज भी बड़े गर्व से सुनाई जाती हैं। वीरों की वसुंधरा पर कई प्रेम कहानियां भी जो आज भी बहुत प्रचलित हैं। कभी कभी एक दासी के रूप के आगे नतमस्तक हो गया राज तो कभी राजा ने नाराज रानी ऐसी रूठी कि उसका नाम ही रूठी रानी पड़ गया।
 
 
dainikbhaskar.com अपने पाठकों के लिए राजस्थान की प्रेम कहानियां सीरीज में ऐसी ही कई कहानियां लेकर आया है। आज की कड़ी में आपको बता रहे हैं  एक ऐसे प्रेमी की कहानी जिसने अपनी प्रेमिका का अपहरण उसके पिता के सामने उस वक्त कर लिया जब उसका स्वयंवर चल रहा था। 
 
 
 
दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू शासक और भारत के महान वीर योद्धाओं में शुमार पृथ्वीराज चौहान का नाम कौन नहीं जानता। एक ऐसा वीर योद्धा जिसने अपने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था और जिसने अपनी आंखे खो देने के बावजूद भी मोहम्मद गौरी को मृत्यु का रास्ता दिखा दिया था।
 
 
पृथ्वीराज चौहान एक वीर योद्धा ही नहीं एक महान प्रेमी भी थे जो कन्नौज के महाराज जय चन्द्र की पुत्री संयोगिता से प्रेम करते थे।दोनों में प्रेम था यह सभी जानते हैं और यह भी जानते हैं कि पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण कर उनसे प्रेम विवाह किया था लेकिन इस प्रेम कहानी की शुरुआत काफी रोचक है, आइये हम आपको बताते हैं कि  आखिर कैसे शुरू हुई संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी।
 तस्वीर देखते ही पिता के दुश्मन की हो गई दीवानी, मूर्ती को पहना दी वरमाला
बात उन दिनों की है जब पृथ्वीराज चौहान अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा अनंगपाल की मृत्यु के बाद दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे।गौरतलब है कि महाराजा अनंगपाल के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराज और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह चौहान से आग्रह किया कि वे पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित करने की अनुमति प्रदान करें।
महाराजा सोमेश्वर सिंह ने सहमती जता दी और पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित किया गया, काफी राजनीतिक संघर्षों के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने।
 
उसी समय कन्नौज में महाराज जयचंद्र का राज था और उनकी एक खूबसूरत राजकुमारी थी जिसका नाम संयोगिता था।जयचंद्र पृथ्वीराज की यश वृद्धि से ईर्ष्या का भाव रखा करते थे।
उसी समय कन्नौज में महाराज जयचंद्र का राज था और उनकी एक खूबसूरत राजकुमारी थी जिसका नाम संयोगिता था।जयचंद्र पृथ्वीराज की यश वृद्धि से ईर्ष्या का भाव रखा करते थे।
एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्नाराय आया जिसके पास देश-दुनिया की कई हस्तियों के चित्र थे और उन्ही चित्रों में एक चित्र था दिल्ली के युवा सम्राट पृथ्वीराज चौहान का।जब कन्नौज की लड़कियों ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो वे देखते ही रह गईं, हर कोई पृथ्वीराज की सुन्दरता का बखान कर रहीं थीं।
 
पृथ्वीराज की बढाई संयोगिता के कानों तक भी पहुंची और वे पृथ्वीराज के उस चित्र को देखने के लिए लालायित हो उठीं। संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्रकार के पास पहुंची और चित्र दिखाने को कहा, जैसे संयोगिता ने पृथ्वीराज का चित्र देखा वे मोहित हो गईं और वह चित्र चित्रकार से ले लिया। इधर चित्रकार ने दिल्ली पहुंचकर पृथ्वीराज से भेट की और राजकुमारी संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया जिसे देखकर पृथ्वीराज के मन में भी संयोगिता के लिए प्रेम उमड़ पडा।
तस्वीर देखते ही पिता के दुश्मन की हो गई दीवानी, मूर्ती को पहना दी वरमाला

उन्हीं दिनों महाराजा जयचंद्र ने संयोगियिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया लेकिन ईर्ष्यावश पृथ्वीराज को उन्होंने इस स्वंयवर में आमंत्रित नहीं किया और उनका अपमान करने के उद्देश्य से उनकी एक मूर्ती को द्वारपाल की जगह खडा कर दिया।
जब राजकुमारी संयोगिता वर माला लिए सभा में आईं तो उन्हें अपने पसंद का वर नजर नहीं आया तभी उनकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ती पर पड़ी और उन्होंने आगे बढ़कर वरमाला उस मूर्ती के गले में डाल दी।

वास्तव में वहां मूर्ती की जगह पृथ्वीराज स्वयं आकर खड़े हो गए थे।संयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते देख जयचंद्र आग बबूला हो गया और वह तलवार लेकर संयोगिता को मारने के लिए दौड़ा लेकिन पृथ्वीराज संयोगिता को अपने घोड़े पर बिठाकर वहां से अपने राज्य ले गए।
आगे जयचंद्र ने पृथ्वीराज से बदला लेने के उद्देश्य से मोहम्मद गौरी से मित्रता की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया।पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 17 बार परास्त किया लेकिन 18वीं बार मोहम्मद गौरी ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया और तपती हुईं सलाखों से उनकी फोड़ दीं।
फिर भी पृथ्वीराज ने हार नहीं मानी और अपने मित्र चन्द्रवरदाई के शब्दों के संकेतों को समझ मोहम्मद गौरी को मार डाला।साथ ही दुश्मनों द्वारा दुर्गति से बचने के लिए चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर दिया।जब संयोगिता को इस बात की जानकारी मिली तो वह एक वीरांगना की भांति सटी हो गई।इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में आज भी यह प्रेमकहानी अमर है। 

तस्वीर देखते ही पिता के दुश्मन की हो गई दीवानी, मूर्ती को पहना दी वरमाला

Monday, August 19, 2013

सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !

मैं हूं आपका नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला। मेरा निर्माण 1734 में शुरू हुआ था। मुझे जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने बनाया था। बेशक मैं आज इस शहर का प्रहरी या खूबसूरत पर्यटन स्थल बन चुका हूं। बरसात के मौसम में मेरी रवानी देखने लायक रहती है, पर मुझे बनाने के पीछे राजघराने की सुरक्षा सबसे बड़ी वजह थी। एक तरफ जब मुगलकाल का पतन था और दूसरी तरफ मराठा ताकतवर हो रहे थे, तब मेरा निर्माण कराया गया।
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
मुझ तक पहुंचने के वैसे तो तीन रास्ते हैं, लेकिन आमेर महल वाला रास्ता तो जब राजपरिवार जयपुर रहने लगा, तब से इतना कारगर नहीं रहा है। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
अलबत्ता कनक घाटी वाला 9 किलोमीटर का रास्ता सबसे ज्यादा व्यस्त रहता है, क्योंकि वो मुझे जयगढ़ से जोड़ता है। 

सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
पर्यटन के लिहाज से कार और बस से मुझ तक पहुंचने का आधुनिक मार्ग तो बहुत बाद में बना है। मेरा सबसे पुराना और सुरक्षित रास्ता शहर के बीच से यानी आज की पुरानी बस्ती से जाता है। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
पथरीली राह लेकिन इतनी खूबसूरत और सर्पीली कि मुझ तक पहुंचने पर ये खूबसूरत हिल स्टेशन का अहसास कराती है। इस रास्ते से ज्यादातर पैदल या दुपहिया वाहन चालक रिस्क लेकर चढ़ते रहते हैं। वैसे राजाओं के जमाने में तो यहां से राजपरिवार हाथी, घोड़े और कहार पर सवार होकर जाते थे। वैसे मेरे आंगन में दो और खासियत हैं। पहली, यहां राजपरिवार का खजाना था, दूसरी यहां कैदियों या अपराधियों को नजरबंद किया जाता था। कहते हैं या शहर की मशहूर नृत्यांगना रस कपूर को भी कैद रखा गया था। साथ ही अवध के नवाब वाजिद शाह को भी इसमें शरण मिली थी। वैसे इसका मूल नाम सुदर्शनगढ़ था लेकिन बाघों के निवास की वजह से इसका नाम नाहरगढ़ पड़ा, लेकिन कहा यह भी जाता है कि नाहरसिंह भोमिया का मंदिर बना इसलिए भी इसका नाम नाहरगढ़ हो गया। महाराजा सवाई राम सिंह ने भी 1868 में इसका विकास कराया और महाराजा माधोसिंह मेरे भीतर माधवेंद्र महल बनाया था जिसमें 9 अलग-अलग सेक्शन बने हुए हैं जिसमें रानियों का निवास भी रहा था। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
मेरे आंगन में बरसात के पानी पीने लायक बनाए रखने के लिए खूबसूरत बावडिय़ां भी बनाई गईं, जो आज भी पानी को बचाए रखने में सक्षम हैं। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
मेरे एक हिस्से में बना ऐतिहासिक पड़ाव दीपावली पर सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनता है, जहां से लोग शहर की खूबसूरती को निहारते हैं। यह देखते हैं कि ये शहर अब कहां से कहां तक फैल गया और फल-फूल रहा है। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !
लेकिन नाहरगढ़ आज भी यह दोहराता है कि बेशक मैं ऊंचा हूं और मुझ तक पहुंचना थोड़ा दूभर है, लेकिन सच में सुरक्षित हूं। हमेशा एक निगहबान की तरह शहर को सुरक्षा देता रहूंगा। 
सबसे 'बदनाम' नृत्यांगना को जब इस किले में किया गया कैद !