Thursday, October 22, 2015

पटना का ऐतिहासिक अगम कुआं। इनसेट में- कुएं में मौजूद पानी।



अगम कुआं' : कभी नहीं सूखता इसका पानी
सम्राट अशोक के वक्त के इस कुएं के रहस्य को जानने की तीन बार कोशिशें की जा चुकी हैं। सबसे पहले 1932 में, दूसरी बार 1962 में और तीसरी बार 1995 में, मगर आज भी ये एक पहेली बना हुआ है। कहा जाता है कि कई बार भयंकर सूखा पड़ने के बावजूद इसका पानी कभी नहीं सूखा। न ही बाढ़ आने पर इसके पानी में कोई खास बढ़ोतरी हुई। कुएं की एक और खासियत ये है कि इसके पानी का रंग बदलता रहता है। इसमें पानी का लेवेल गर्मी में अपने सामान्य लेवेल से सिर्फ एक से डेढ़ फीट नीचे जाता है। वहीं बारिश के दिनों में भी पानी का लेवेल सामान्य से केवल एक से डेढ़ फीट तक ऊपर आता है।
अजीबो-गरीब तर्क
कुएं के कभी न सूखने के पीछे ये तर्क दिया जाता है कि यह पश्चिम बंगाल स्थित गंगा सागर से जुड़ा है। एक बार एक अंग्रेज की छड़ी गंगा सागर में गिर गई थी जो बहते-बहते पाटलिपुत्र स्थित इस कुएं के ऊपर आकर तैर रही थी, आज भी वो छड़ी कोलकाता के म्यूजियम में रखी हुई है।
सम्राट अशोक ने इसी में फेंकवाई थी अपने 99 भाइयों की लाशें
यह कुआं खुद में कई सवाल भी समेटे है। मसलन- आखिर क्यों सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर उनकी लाशें इस कुएं में डलवाईं? कहा जाता है कि अशोक ने राजा बनने के लिए अपने 99 भाइयों की हत्या करवा दी थी और उनकी लाशें इसी कुएं में फेंकवा दी थीं। अशोक ने अगम कुएं को विरोधियों की हत्या कर लाश फेंकने के लिए ही बनवाया था। अशोक के समय भारत आए चीनी दार्शनिकों ने अपनी किताबों में इस कुएं का जिक्र इसी रूप में किया है।
लोग अगम कुएं पर चढ़ावा चढ़ाते हैं, इसे रोकने के लिए कुएं के चारो ओर जालियां लगा दी गई हैं।

कुएं के तहखाने में छिपा है अशोक का खजाना
दूसरा अहम सवाल ये है कि क्या वाकई इस कुएं में सम्राट अशोक का खजाना दबा है? ऐसा कहा जाता है कि अगम कुएं के भीतर  नौ और उसके बाद भी कई छोटे-छोटे कुएं हैं। सबसे अंत में एक तहखाना है जहां अशोक अपना खजाना रखता था। उसे खजाना गृह कहा जाता था। अशोक के साम्राज्य कुम्हरार से ये जुड़ा हुआ था, जहां से सुरंग के जरिये यहां खजाना रखा जाता था।  
...तो इसलिए पड़ा ये नाम 
इस कुएं की गहराई नापने की अब तक तीन कोशिशें हुई हैं, जिसके बाद पुरातत्व विभाग इस नतीजे पर पहुंचा है कि इसकी गहराई लगभग 105 फीट है। चूंकि 105 फीट की गहराई सम्राट अशोक के काल में बहुत ज्यादा थी और उस जमाने में सिर्फ 20-25 फीट की खुदाई पर ही पानी निकल आता था, इसलिए इस कुएं का नाम अगम कुआं पड़ा।अगम का मतलब होता है पाताल से जुड़ा हुआ। 
 
तीन कोशिशों के बाद भी एक पहेली
कुएं के रहस्य को जानने के लिए सबसे पहले 1932 में अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयास किया था, लेकिन कई फीट पानी बाहर निकालने के बाद भी इसकी गहराई का पता नहीं चल पाया। कहा जाता है कि पानी निकाले जाने से आस-पास के इलाकों में बाढ़ के हालात पैदा हो गए थे, लेकिन कुएं की गहराई मालूम नहीं हो सकी। सबसे हैरानी की बात यह रही कि कुएं का पानी फिर उसी दिन अपने पुराने स्तर पर आ गया। दूसरी बार 1962 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने कुएं की गहराई जानने 
की कोशिश की और दिसंबर 1995 में तीसरी बार पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने। मगर इसका रहस्य अब भी पूरी तरह खुल नहीं पाया है।

अगम कुएं के पास ही शीतला माता का मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि पहले कुएं की पूजा की जाती है, उसके बाद शीतला माता की।


धार्मिक महत्व भी है अगम कुएं का
'अगम कुआं' लोगों की आस्था का भी केन्द्र है। लोग इस कुएं की पूजा करते हैं और अपनी समस्याओं को दूर करने और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए यहां पहुंचते हैं। इस कुएं का पानी पवित्र माना जाता है। लोग इसका इस्तेमाल कुष्ठ रोग, चिकन पॉक्स जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए करते हैं। कुएं के पास ही शीतला माता का मंदिर भी है। ऐसी मान्यता है कि पहले कुएं की पूजा की जाती है, उसके बाद शीतला माता की। लोग कुएं पर चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। हालांकि इसे रोकने के लिए अब कुएं के चारो ओर जालियां लगा दी गई हैं। शीतला माता की पूजा के लिए इसी कुएं के जल का इस्तेमाल किया जाता है। 
 
ब्रिटिश ने लगाया था इसका पता 
1902-03 में ब्रिटिश खोजकर्ता लॉरेंस वाडेल ने इस कुएं का पता लगाया था। वाडेल के मुताबिक करीब 750 साल पहले जब कभी कोई मुस्लिम अधिकारी पटना में आता था, तो सबसे पहले सोने और चांदी के सिक्के इस कुएं में डालता था। ऐसा भी कहा जाता है कि जब कोई स्थानीय चोर-डकैत अपने काम में सफल होता था तो इस कुएं 
में कुछ पैसे डाल देता था। ऐसा बताया जाता है कि जब इस कुएं के पास वाडेल पहुंचे तो वहां कई मूर्तियां मिली थीं। 

बिहार की राजधानी पटना आज ऐसी दिखती है।

पटना हरयंका, नंदा, मौर्य, शुंगा, गुप्त और पाला साम्राज्यों का हिस्सा रहा है। भारत यात्रा पर आए चीन के प्रसिद्ध Philosopher फाहियान ने इसे 'पा-लिन-फोऊ' नाम दिया था। इसे पहले पाटलिपुत्र, पाटलिग्राम, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद नामों से भी जाना जाता था। 
 
> कहा जाता है कि पाटलिपुत्र की स्थापना अजातशत्रु ने की थी। अजातशत्रु ने लिच्छवियों के आक्रमण से इसकी सुरक्षा के कुछ इंतजाम भी किए थे। वैसे कुदरती तौर पर गंगा नदी तीन सहायक नदियों घाघरा, सोन और गंडक से मिलकर इसकी सुरक्षा करती है। 
 
> लोककथाओं में राजा पत्रक को इस शहर का जनक माना जाता है। उनकी रानी पाटलि ने जब बेटे को जन्म दिया था, तो खुश होकर राजा ने जादू से इस नगर को बनाया था। इसी वजह से इसका नाम पाटलि+पुत्र = पाटलिपुत्र पड़ा। 
 
> दूसरी ओर, कुछ लोग कहते हैं कि पटन देवी (एक हिन्दू देवी) के नाम पर इसका नाम पटना पड़ा, तो कुछ कहते हैं कि 'पाटली' एक पेड़ की प्रजाति है, जो सिर्फ पटना में पाई जाती है, उसी पर इसका नाम पड़ा। बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि पटना का पाटलिपुत्र से एक अटूट संबंध रहा है। 

> 1912 में बंगाल विभाजन के बाद पटना, उड़ीसा और बिहार की राजधानी बना। 1935 में उड़ीसा, बिहार से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य बन गया। पटना बिहार की 
राजधानी बना रहा।

> देश आजाद होने के बाद पटना बिहार की राजधानी बना रहा। 2000 में झारखंड के अलग होने के बाद भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया।

> पटना से कई विद्वान जुड़े रहे हैं। कहा जाता है कि आर्यभट्ट, पाणिनी, चाणक्य, कालीदास और कामसूत्र के लेखक महर्षि वात्स्यायन का जन्म यहीं हुआ था।

Friday, October 16, 2015

कामाख्या पीठ


कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर है। माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है। माता सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे। जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसे से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं।
कामाख्या शक्तिपीठ चमत्कारों और रोचक तथ्यों से भरा हुआ है, आज हम अपको कामाख्या शक्तिपीठ से जुड़े ऐसे ही 6 रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं-

मंदिर में नहीं है देवी की मूर्ति

इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर में एक कुंड-सा है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस जगह से पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है। यह पीठ माता के सभी पीठों में से माहापीठ माना जाता है।










कामाख्या मंदिर

कामाख्या शक्तिपीठ

यहां माता हर साल होती हैं रजस्वला

इस पीठ के बारे में एक बहुत ही रोचक कथा प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस जगह पर माता का योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं। इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है। तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है।

प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है गीला वस्त्र

यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आसपास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

कामाख्या मंदिर 
कामाख्या मंदिर

लुप्त हो चुका है मूल मंदिर

कथा के अनुसार, एक समय पर नरक नाम का एक असुर था। नरक ने कामाख्या देवी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा। देवी उससे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने नरक के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि अगर नरक एक रात में ही इस जगह पर मार्ग, घाट, मंदिर आदि सब बनवा दे, तो देवी उससे विवाह कर लेंगी। नरक ने शर्त पूरी करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया और काम शुरू कर दिया। काम पूरा होता देख देवी ने रात खत्म होने से पहले ही मुर्गे के द्वारा सुबह होने की सूचना दिलवा दी और विवाह नहीं हो पाया। आज भी पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है और जिस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है, उसे कामदेव मंदिर कहा जाता है। मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं, जिस बात से क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ठ ने इस जगह को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि श्राप के कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया।
 
 

16वीं शताब्दी से जुड़ा है आज के मंदिर का इतिहास

मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए। युद्ध में विश्व सिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमते-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए। वहां पर उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया। यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई। खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला। राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था। जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया।
 

Tuesday, October 28, 2014

एक श्राप में छुपा बड़ा 'रहस्य', इसलिए है ब्रह्मा का दुनिया में एक मंदिर

एक श्राप में छुपा बड़ा 'रहस्य', इसलिए है ब्रह्मा का दुनिया में एक मंदिर
अजमेर. पुष्कर में 31 अक्टूबर से 6 नवंबर तक विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेला लग रहा है। इस अवसर पर हम आपके लिए लेकर आए हैं पुष्कर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां।
 
पुष्कर में है दुनिया का एकमात्र ब्रह्मा जी का मंदिर
 
राजस्थान के पुष्कर में बना भगवान ब्रह्मा का मंदिर अपनी एक अनोखी विशेषता की वजह से न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है, यह ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है। हिन्दू धर्म में भगवान ब्रह्मा को संसार का रचनाकार माना जाता है।
  
पत्नी सरस्वती ने ब्रह्मा जी को क्यों दिया था श्राप
 
हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। ब्रह्मा जी ने जब उसका वध किया तो उनके हाथों से तीन जगहों पर पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी। इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। इस घटना के बाद ब्रह्मा ने यज्ञ करने का फैसला किया। 
 
पूर्णाहुति के लिए उनके साथ उनकी पत्नी सरस्वती का होना जरूरी था, लेकिन उनके न मिलने की वजह से उन्होंने गुर्जर समुदाय की एक कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को पूर्ण किया। उसी दौरान देवी सरस्वती वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं।
 
उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, हालांकि बाद में इस श्राप के असर को कम करने के लिए उन्होंने यह वरदान दिया कि एक मात्र पुष्कर में उनकी उपासना संभव होगी। भगवान विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सरस्वती ने विष्णु जी को भी श्राप दिया था कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण राम (भगवान विष्णु का मानव अवतार) को जन्म लेना पड़ा और 14 साल के वनवास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था।

Monday, October 28, 2013

इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का डौंडियाखेड़ा गांव इन दिनों सुर्खियों में है। आजकल सभी की नजरें उन्नाव जिले डौंडियाखेड़ा गांव पर टिकी हुई हैं, क्योंकि शोभन सरकार नाम के महंत ने वहां एक हजार टन सोना के छुपे होने की बात कही है। ऐसे में हर कोई बड़ी हसरत से उत्तरप्रदेश के इस गोल्डेन विलेज को निहार रहा है, जहां कभी राज राव रामबक्श सिंह का किला हुआ करता था। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब बाबा शोभन सरकार के सपने को आधार मानकर पुरातत्व विभाग की टीम ने 1000 टन के सोने की खोज शुरू कर दी। सरकार से लेकर हर कोई कयास लगाये जा रहा है कि अगर हजार टन सोना देश को मिल जाता है तो भारत की तस्वीर के साथ तकदीर ही बदल जाएगी।
 
रुपया अमेरिका डॉलर के मुकाबले मूछों पर ताव मारता नजर आएगा, अर्थव्यवस्था को भी पर लग जाएंगे, भारत से गरीबी और महंगाई का कलंक भी मिट सकता है। पर शायद आपको नहीं पता कि देश में कई ऐसी गुफाएं हैं जिनमें लाखों-करोड़ों टन सोना छिपा हुआ है। बिहार में भी एक ऐसी गुफा है जिसमें लाखों टन सोना और अन्य खजाने छिपा है। ये सोना सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा छिपाए गए थे। अगर ये सोना मिल जाए तो फिर क्या कहने। लेकिन, ये सोना आखिर छिपा कहां है। चलिए हम आपको बताते हैं।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
डौंडियाखेड़ा आज भले ही सोने के खजाने को लेकर सुर्खियों में है लेकिन भारत में ऐसे कई जगह हैं, जो अकूत खजानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। सोने के खजाने से जुड़ा ऐसा ही एक मामला बिहार के एक गुफा से जुड़ा है, जिसमें लाखों टन सोना छिपा हुआ है। यह गुफा बिहार के छोटे से शहर राजगीर में है।
प्राचीन में मगध सम्राज्य की राजधानी रहा बिहार का राजगीर शहर छोटा जरूर हो सकता है, लेकिन इस शहर ने भारतीय इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएं देखी हैं। यही पर बुद्ध ने मगध के सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था। लगभग 3-4 ईसा पूर्व भगवान बुद्ध की स्मृति में बनी कई कई स्मारकों में से एक 'सोन भंडार गुफा' रहस्य और रोमांच से भरी है। किवदंतियों के मुताबिक सोन भंडार गुफा में भरा है सोने और बहुमूल्य खजाने का भंडार।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
बिहार के छोटे शहर राजगीर में जहां भगवान बुद्ध ने सम्राट बिम्बिसार को धर्मोपदेश दिया था, उन्ही की याद में बनी स्मारकों में से एक है सोन भंडारगुफा, जो दो चट्टानों के बीच वैभर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस तरह की गुफाएं हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। वैभर पहाड़ी के समीप स्थित पश्चिमी गुफा में एक ऐसा स्मारक है जिसे सोन भंडार गुफा (अर्थात खजाने का अकूत भंडार) भी कहा जाता है, जिसमें छिपी है बेशुमार दौलत। लेकिन इस गुफा में जाने का क्या है रास्ता? इस बारे में किसी को कुछ भी नहीं मालूम।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!


ऐसा माना जाता है कि खजाना एक 10.4x5.2 मीटर आयाताकार मजबूत कोठरी में कैद है, जिसका रास्ता शायद किसी को पता नहीं। गुंबद की भीतरी छत सीधे दीवारों के सहारे 1.5 मीटर ऊंची है, जो चट्टानों को काटकर बनाई गई मौर्यकालीन गर्भगृहों जैसी दिखाई पड़ती है।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
सोन भंडार गृह के पास ही उस जैसी और गुफाएं है जिन्हे बराबर की गुफाएं कहा जाता है। इन गुफाओं के कमरे भी सोन भंडार गुफा की तरह ही बनाये गये हैं। भारत में बहुत से ऐसे गुफा मंदिर हैं जिन्हे असाधारण कृतियों के लिए जाना जाता है। 5-6 वीं सेंचुरी में इन गुफाओं के अंदर और बाहर कई तरह के अभिलेख पाये जाते हैं, जो मोस्टली विभिन्न तीर्थयात्रियों द्वारा अंकित किये जाते रहे हैं। जैसी भगवान विष्णु की मूर्तियां आज नालंदा के म्युजियम में हैं, वैसी ही मूर्तियां गुफाओं के पास पाई जाती हैं, जो इस घटना की तरफ इशारा करती हैं कि 7वीं सेंचुरी में विष्णु की पूजा जाती रही है।
भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!
किवदंतियों के मुताबिक, गुफाओं की असाधारण बनावट ही लाखों टन सोने के खजाने की सुरक्षा करती हैं। इन गुफाओं में छिपे खजाने तक एंट्री का रास्ता एक बड़े प्राचीन पत्थर के पीछे से होकर जाता है। कुछ का मानना है कि खजाने तक पहुंचने का रास्ता वैभरगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णि गुफाओं तक जाता है जो सोन भंडार गुफा के दूसरी तरफ तक पहुंचता है। कुछ लोगों का मानना है ये खजाना पूर्व मगध सम्राट जरासंध का है तो कुछ का मानना है कि यह खजाना मौर्यशासक बिम्बिसार का था।

भूल जाएंगे डौंडियाखेड़ा के खजाने, इस गुफा में छुपा है लाखों-करोड़ टन सोना!

अगर इस गुफे में छुपे खजानों की तलाश की जाए तो देश की आर्थिक स्थिति में न सिर्फ सुधार होगा, बल्कि भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश के रूप में भी उभर कर सामने आ जाएगा।

Monday, October 21, 2013

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य

'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
उदयपुर. चीन के दीवार का नाम विश्व में सभी जानते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में भी एक ऐसी दीवार है जो सीधे तौर पर चीन के दीवार को टक्कर देती है। जिसे भेदने की कोशिश महान राजा अकबर ने भी किया लेकिन भेद न सके। जिसके दीवार की मोटाई इतनी है कि उस पर 10 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।
राजस्थान की भूमि ने अनेक वीर सपूतों को जन्म दिया है। यहां पग पग पर वीरों के अद्मय साहस और पराक्रम की कहानियां हैं। इन वीरों की तहर यहां के किले भी बहुत मशहूर हैं। 'किले की कहानी' सीरीज में आज आपको बताएगा कि ऐसे कई सारे अद्भुत रहस्यों से भरी है इस किले के दीवार की कहानी।
कैसे बनी ये 36 किलोमीटर लंबी दीवार
किले के दीवार की निर्माण से जुड़ी कहानी बहुत ही दिलचस्प है। 1443 में राणा कुंभा ने किले का निर्माण शुरू किया लेकिन, जैसे जैसे  दीवारों का निर्माण आगे बढ़ा वैसे-वैसे दीवारें रास्ता देते चली गई। दरअसल, इस दीवार का काम इसलिए करवाया जा रहा था ताकि विरोधियों से सुरक्षा हो सके। लेकिन दीवारें थी की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर कारिगरों ने राजा को बताया कि यहां पर किसी देवी का वास है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस किले के लिए चढ़ाई गई संत की बलि
देवी कुछ और ही चाहती हैं। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया और सारा गथा सुनाकर इसका हल पूछा। संत ने बताया कि देवी इस काम को तभी आगे बढ़ने देंगी जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठिक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है। यह किला चारो तरफ से अरावली की पहाड़ियों की मजबूत ढाल द्वारा सुरक्षित है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसका निर्माण पंद्रहवी सदी में राणा कुम्भा ने करवाया था। पर्यटक किले के ऊपर से आस पास के रमणीय दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। शत्रुओं से रक्षा के लिए इस किले के चारों ओर दीवार का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि चीन की महान दीवार के बाद यह एक सबसे लम्बी दीवार है। यह किला 1,914 मीटर की ऊंचाई पर समुद्र स्तर से परे क्रेस्ट शिखर पर बनाया गया है। इस किले के निर्माण को पूरा करने में 15 साल का समय लागा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
दस घोड़े एक साथ दौड़ते है इसके दीवार पर
महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़ों को एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करता था।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
यहां है बादलों का महल
बादल महल को ‘बादलों के महल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुम्भलगढ़ किले के शीर्ष पर स्थित है। इस महल में दो मंजिलें हैं एवं यह संपूर्ण भवन दो आतंरिक रूप से जुड़े हुए खंडों, मर्दाना महल और जनाना महल में विभाजित हैं। इस महल के कमरों के दीवारों पर सुंदर दृश्यों को अंगित किया गया है जो उन्नीसवीं शताब्दी के काल को प्रदर्शित करते हैं। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
उस समय भी होता था एसी का प्रयोग
आज भी एसी का प्रयोग कर ऑफिसों में पाइपों के द्वारा ठंढ़क पहूंचाई जाती है। उस समय भी महल के इस परिसर में रचनात्मक वातानुकूलन प्रणाली लगा हुआ था जो आज भी है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है जिसे देखना एक दिलचस्प बात है। इसमें पाइपों की एक श्रृंखला है जो इन सुंदर कमरों को ठंडी हवा प्रदान करती है और साथ ही कमरों को नीचे से भी ठंडा करती हैं। पर्यटक जनाना महल में पत्थरों की जालियों से बाहर का नजारा देख सकते हैं। ये जालियां रानीयों द्वारा दरबार की कार्यवाही को देखने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
घूमने के लिए फुल पैकेज है कुम्भलगढ़
कुम्भलगढ़ अपने शानदार महलों के अतिरिक्त कई प्राचीन मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। उनमें से वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, मुच्छल महादेव मंदिर, परशुराम मंदिर, मम्मादेव मंदिर और रणकपुर जैन मंदिर इस पर्यटन स्थल के मुख्य पवित्र स्थल हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
वन अभ्यारण्य के लिए है फेमस
कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य, चार सींगों वाले हिरन या चौसिंघा, काला तेंदुआ,जंगली सूअर, भेड़ियों, भालू, सियार, सांभर हिरन, चिंकारा, तेंदुओं,लकड़बघ्घों, जंगली बिल्ली, नीलगाय और खरगोश देखने के लिए आदर्श स्थल है। राज्य में केवल इस अभ्यारण्य में ही पर्यटक भेड़ियों को देख सकते हैं। हल्दीघाटी और घणेरो कुम्भलगढ़ के पर्यटन के लिए अन्य प्रसिद्ध आकर्षण हैं।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
सुरक्षा ऐसी कि परिंदा भी न मार सके पैर
सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारतें बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वावलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है।
यहां का लाइट और साउंड शो है सबसे फेमस
किले के अंदर प्रवेश के लिए सात द्वार बने हुए हैं जिसमें, राम द्वार, पग्र द्वार, हनुमान द्वार आदि फेमस हे। इस किले के अंदर कुल 360 मंदिरों का समूह है जिसमें, 300 जैन मंदिर और 60 हिन्दू मंदिर हैं। इनमें से नीलकंठ महादेव के मंदिर का महत्व अन्य मंदिरों से ज्यादा है। इस मंदिर के पास देर शाम होने वाले लाइट और साउंड शो की अपनी एक अलग पहचान है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इस शो में बेहद खूबसूरती से कुंभलगढ़ किला के पूरे इतिहास के बारे में बताया जाता है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घोड़ों के दौडऩे और बंदूकों की गोलियों की आवाज आज भी लोगों को प्रचीन समय का आभास कराता है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
इसे बनाते समय रखा गया वास्तु शास्त्र का ध्यान
वास्तु शास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर,जलाशय, बहार जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारते, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
सिर्फ एक बार छाया किले पर हार का साया
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
जिसे कोई और न मार सका उसके बेटे ने ही ले ली जान
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्विराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
कुंभलगढ़ को अपने इतिहास में सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा जब मुगल सेना ने किले की तीन महिलाओं को जान से मारने की धमकी देकर अंदर प्रवेश करने का रास्ता पूछा। महिलाओं ने डर से एक गुप्त द्वार बताया लेकिन, इसके बाद भी मुगल अंदर जाने में सफल नहीं हो पाए। एक बार फिर अकबर के बेटे सलीम ने भी इस किले पर फतह करने की सोची लेकिन उसे भी खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। 
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
धोखा देने पर चुनवा दिया दीवार में
कुछ समय बाद जब राजा को उस महिलाओं के बारे में पता चला तो उन्होंने तीनों को किले के द्वार पर दीवार में जिंदा चुनवा दिया। ऐसा कर राजा ने लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य के सुरक्षा के साथ जो भी खिलवाड़ करेगा उसका यही अंजाम होगा।
'द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया' जो देती है चीन की दीवार को टक्कर, जानें इसका रहस्य
यहां पहूंचना है बेहद आसान
कुम्भलगढ़ किला उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर की दूरी पर है। उदयपुर शहर से कुम्भलगढ़ किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। पर्यटक आसानी से रेलमार्ग, वायुमार्ग या सडक द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं।

Thursday, September 26, 2013

जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....

PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
जयपुर। दुनिया में सबसे अधिक किले और गढ़ यदि कहीं हैं तो वो राजस्थान में। राजस्थान के किसी भी हिस्से में चले जाइए, कोई न कोई दुर्ग या किला सीना ताने आपका इंतजार करता हुआ मिल जाएगा। आज हम बात करत हैं एक ऐसे ही दुर्ग की। जो अपनी खासियतों के कारण पूरी दुनिया में ख्यात है। इस किले का नाम है गागरोन। झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर नदी होने से घिरा हुआ है। जिसके कारण इसका नाम ही पड़ गया जल-दुर्ग।
कालीसिंध व आहू नदी के संगम स्थल पर बना यह दुर्ग आसपास की हरी भरी पहाडिय़ों की वजह से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। गागरोन दुर्ग का विहंगम नजारा पीपाधाम से काफी लुभाता है। इन स्थानों पर लोग आकर गोठ पार्टियां करते हैं। लोगों के लिए यह बेहतर पिकनिक स्पॉट है।
गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है। सैकड़ों बरस पहले जब यहां के शासक अचलदास खींची मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए जौहर कर दिया था। सैकड़ों की तादाद में महिलाओं ने मौत को गले लगा लिया था। इलाके में आज भी इन महिलाओं की बहादुरी के किस्से चर्चित हैं।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
इस शानदार धरोहर को कुछ महीने पहले ही यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया है। इसके अलावा प्रदेश के पांच अन्य पहाड़ी किलों (दुर्ग) को भी शामिल किया गया है। इनमें आमेर महल, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़ हैं। अब प्रदेश की आठ धरोहर दुनिया के नक्शे पर आ गई हैं। भरतपुर का घना पक्षी अभयारण्य और जयपुर का जंतर-मंतर सूची में पहले से ही हैं।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
अब गागरोन किले में यूनेस्को की टीम का सितंबर में आना प्रस्तावित है। गागरोन किले को विश्व धरोहर बनाए जाने के बाद यह टीम पहली बार झालावाड़ पहुंचेगी। टीम के सदस्य गागरोन किले में जाकर पर्यटकों के लिए किए गए विकास कार्य और सुविधाओं का जायजा लेंगे।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
गागरोन का किला झालावाड़ से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित है। 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ यह किला जल-दुर्ग होने के साथ साथ पहाड़ी दुर्ग भी है। यह एक ओर पहाड़ी तो तीन ओर से जल से घिरा हुआ है। किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर।
PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
इतिहासकारों के अनुसार, इस दुर्ग का निर्माण सातवीं सदी से लेकर चौदहवीं सदी तक चला था। पहले इस किले का उपयोग दुश्मनों को मौत की सजा देने के लिए किया जाता था।
 PHOTO : जब किले में हजारों औरतों ने खुद को जिंदा जला दिया, क्यूंकि....
किले के अंदर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं।

भानगढ़ राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य

राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भानगढ़ किले के रातों रात खंडहर में तब्दील हो जाने के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। इन किस्सों को सुनकर लोग मायावी और रहस्यों से भरे इस किले की ओर खिंचे चले आते हैं। सूर्यास्त से पहले इस खंडहर में लोग घूमते टहलते मिल जाएंगे। लेकिन 6 बजे के बाद यहां आने वालों का हाथ पकड़कर किले के बाहर कर दिया जाता हैं। किले की एक दीवार पर भारतीय पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा हैं। इस पर साफ साफ शब्दों में लिखा है सूर्यास्त के बाद प्रवेश वर्जित हैं। 


राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का नेशनल पार्क के एक छोर पर खड़ा है खंडहरनुमा भानगढ़। इस किले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। भगवंत दास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल मानसिंह के भाई माधो सिंह ने बाद में इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
भानगढ़ का किला चारों ओर से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है, कहते है ये भानगढ़ का जौहरी बाजार था।जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनी दो मंजिला दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है। लेकिन तीनों मंजिल लगभग पूरी तरह ढेर हो चुकी है।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
चहारदीवारी के अंदर कई दूसरी इमारतों के खंडहर बिखरे पड़े हैं। इनमें से एक में तवायफें रहा करती थीं और इसे रंडियों के महल के नाम से जाना जाता है। किले के अंदर बने मंदिरों में गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगलादेवी और केशव मंदिर मिल जाएंगे। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बावली है। जिसे अब भी लोग अपने मुताबिक इस्तेमाल करते हैं। चाहे नहाना हो या कपड़े धोना..
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
खंडहर बना भानगढ़ एक शानदार अतीत के बर्बादी की दुखद दास्तान है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं बची है। लेकिन हैरानी की बात है कि इसके मंदिर पूरी तरह महफूज है। इन मंदिरों की दीवारों और खंभों पर की गई नक्काशी इत्तला करती है कि यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा?

राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
माधो सिंह के बाद उसका बेटा छतर सिंह भानगढ़ का राजा बना। छतरसिंह 1630 में लड़ाई के मैदान में मारा गया। उसकी मौत के साथ ही भानगढ़ की रौनक घटने लगी। छतर सिंह के बेटे अजब सिंह ने नजदीक में ही अजबगढ़ (अजबगढ़ की कहानी अगले भाग में )का किला बनवाया और वहीं रहने लगा। आमेर के राजा जयसिंह ने 1720 में भानगढ़ को जबरन अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस समूचे इलाके में पानी की कमी तो थी ही। लेकिन 1783 के अकाल में यह किला पूरी तरह उजड़ गया।
भानगढ़ के बारे में जो अफवाहें और किस्से हवा में उड़ते हैं। उनके मुताबिक इस इलाके में सिंघिया नाम का एक तांत्रिक रहता था। उसका दिल भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती पर आ गया। जिसकी सुंदरता समूचे राजपुताना में बेजोड़ थी।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की एक दासी को बाजार में खुशबूदार तेल खरीदते देखा। सिंघिया ने तेल पर टोटका कर दिया ताकि राजकुमारी उसे लगाते ही तांत्रिक की ओर खिंची चली आए। लेकिन शीशी रत्नावती के हाथ से फिसल गई और सारा तेल एक बड़ी चट्टान पर गिर गया। टोटके की वजह से चट्टान को ही तांत्रिक से प्रेम हो गया और वह सिंघिया की ओर लुढ़कने लगा।
चट्टान के नीचे कुचल कर मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि मंदिरों को छोड़ कर समूचा किला जमींदोज हो जाएगा और राजकुमारी समेत भानगढ़ के निवासी मारे जाएंगे। आसपास के गांवों के लोग मानते हैं कि सिंघिया के शाप की वजह से ही किले के अंदर की सभी इमारतें रातों रात ध्वस्त हो गई। यहां रहने वालों को यकीन है कि रत्नावती और भानगढ़ के बाकी निवासियों की रूहें अब भी किले में भटकती हैं। इसके अलावा रात के वक्त इन खंडहरों में जाने वाला कभी वापस नहीं आता।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सूरज ढलने के बाद और उसके उगने से पहले किले के अंदर घुसने पर पाबंदी लगा रखी है। दिन में भी इसके अंदर खामोशी पसरी रहती है। कई सैलानियों का कहना है कि खंडहरों के बीच से गुजरते हुए उन्हें अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। किले के एक छोर पर केवड़े की झाडिय़ां हैं। हवा जब तेज चलती है तो केवड़े की खुशबू चारों तरफ फैल जाती हैं और किले का रहस्य और भी गाढ़ा हो जाता हैं।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने किले के अंदर मरम्मत का कुछ काम किया है। लेकिन निगरानी की व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण इसके बरबाद होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। किले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कोई दफ्तर नहीं है। दिन में कोई चौकीदार भी नहीं होता। पूरा किला बाबाओं और तांत्रिकों के हवाले रहता है।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले में बेपरवाह तांत्रिक बेरोकटोक अपने अनुष्ठान करते हैं। आग की वजह से काली पड़ी दीवारें और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के टूटे फूटे बोर्ड किले में उनकी अवैध कारगुजारियों के सबूत हैं। दिलचस्प बात यह है कि भानगढ़ के किले के अंदर मंदिरों में पूजा नहीं की जाती।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले में स्थित गोपीनाथ मंदिर में तो कोई मूर्ति भी नहीं है। तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए अक्सर उन अंधेरे कोनों और तंग कोठरियों का इस्तेमाल करते है। जहां तक आम तौर पर सैलानियों की पहुंच नहीं होती। किले के बाहर पहाड़ पर बनी एक छतरी तांत्रिकों की साधना का प्रमुख अड्डा बताई जाती है। इस छतरी के बारे में कहा जाता है कि तांत्रिक सिंघिया वहीं रहा करता था।
राजकुमारी के इश्क में पगलाए तांत्रिक के शाप से बर्बाद हो गया एक राज्य
किले के खंडहरों में टंगी सिंदूर से रंगी अजीबोगरीब शक्लों वाली मूर्तियां कमजोर दिलवाले को भूतों के होने का अहसास करा देती हैं।किले में कई जगह राख के ढेर, पूजा के सामान, चिमटों और त्रिशूलों के अलावा लोहे की मोटी जंजीरें भी मिलती हैं। ऐसा लगता है कि इन जंजीरों का इस्तेमाल उन्मादग्रस्त लोगों को बांधने के लिए किया जाता है। ऐसे ही तमाम राजो रहस्यों को समेटे यह किला अपने सुंदर अतीत पर खंडहर की शक्ल में रोता तांत्रिकों का अड्डा बन बैठा हैं।